कविता

कविता और नहीं कुछ होती,बस मन के भावों गान है।यह कबीर की साखी जैसी,और घनानंद की सुजान है।पन्त की पल्लव सी मधुर और,दिनकर की हुंकार सी ।कविता पढ़ता लिखता है जो,बन जाता वो महान है।। अशोक ‘प्रियदर्शी’

कविता

Leave a comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Design a site like this with WordPress.com
Get started