दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखे न कोय।
जो रहीम दीनहिं लखे,दीन बन्धु सम होय।।

आइये गरीब,बेबस लाचार और दुखों से भरी जिंदगी जीने वाले दुखियारों पर लिखी कुछ पंकितयों को देखते हैं….
है दुःखद बात दुखियारों की,
दुःख में ही सुख को देख रहे ।
पल-पल करते वो अश्रु पात,
हर क्षण वो खुद को कोश रहे ।।
दुःख भरी निशा का अंत करो,
ईश्वर को आह सुनते ।
हैं चापलूस जो बेईमान,
जीवन का लुत्फ उठाते ।।
लेकर कुछ ख्वाब दिलो में,
हर दर पे भटक के हरे ।
कोई भूंखे-नंगो पर रहम करे ना,
बस ताना हर जन मारे ।।
सुख-दुःख इस जीवन के दो फूल,
अरे!नर जाना कभी न भूल ।
दुःखद जो सुबह तेरा है आज,
शाम को मिले खुशी का फूल ।।
कभी न मानो हार मेरे बंधु,
लड़े जा तू अंतिम दम तक ।
जब आएगा तेरा शुभ वक़्त,
बनेगा तू अमीर सा लक ।।
है विकल दुःख से अश्रुपात कर,
गम भरे रैन-दिन आते ।
ईमान हृदय है भाव साफ,
मन मैल कभी ना लाते ।।
देने वाला गम दिया हमे,
यह जग खुशियों से भरा रहे ।
ईमानदार का मान नहीं,
बदमाशों का सम्मान रहे ।।
जो सत्य मार्ग पर सदा चले,
कांटो की सेज़ उन्हें मिलती ।
मन हार कभी न मन रहा ,
मन मे आशाएं हैं पलती ।।
दीन सदा परहित को चाहे,
सबसे प्रीति और प्यार करे ।
पर भ्रस्टाचारी दुनिया वाले,
क्यों उन पर अत्याचार करे ।।